PM मोदी ने फिलिस्तीनी राष्ट्रपति से बात की:कहा
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नई दिल्ली27 मिनट पहले
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से फोन पर बातचीत की। (फाइल फोटो)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 अक्टूबर गुरुवार को फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से बातचीत की। इस दौरान PM ने गाजा के अल अहली अस्पताल में नागरिकों की मौत पर संवेदना व्यक्त की। मोदी ने अब्बास को भरोसा दिलाया कि भारत फिलिस्तीन के लोगों के लिए मानवीय मदद देना जारी रखेगा।
इजराइल और हमास की जंग का आज 13वां दिन है। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने हमास के कब्जे वाले गाजा के हेल्थ डिपार्टमेंट के हवाले से बताया है कि गाजा में अब तक कुल 3785 लोग मारे गए हैं। इनमें 1524 बच्चे और 120 बुजुर्ग हैं। 12 हजार 493 लोग घायल हैं। इनमें चार हजार बच्चे हैं।
हॉस्पिटल पर हमला
मंगलवार-बुधवार की दरमियानी रात गाजा सिटी के हॉस्पिटल पर रॉकेट हमले में 500 लोग मारे गए थे। हमास और इजराइल हमले का आरोप एक-दूसरे पर लगा रहे हैं।
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने अमेरिकी इंटेलिजेंस अफसरों के हवाले से जारी एक रिपोर्ट में कहा- मंगलवार और बुधवार की दरमियानी रात गाजा के हॉस्पिटल पर हमला हमास ने किया। हम शुरुआती इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स के आधार पर इस नतीजे तक पहुंचे हैं।
इंटेलिजेंस इनपुट्स के लिए सैटेलाइट इमेजेस और इन्फ्रारेड डेटा जुटाया गया। इसमें साफ हुआ कि गाजा के अंदर से ही कोई रॉकेट या मिसाइल दागी गई। यह इजराइल की तरफ से नहीं आई। इसके पहले इजराइल ने भी यही दावा किया था। इसके बाद उसने बतौर सबूत हमास के दो मेंबर्स की बातचीत का ऑडियो भी जारी किया था।

गाजा शहर में अहली अरब अस्पताल पर हुए हमले में मारे गए लोग ।
गाजा को 100 मिलियन डॉलर की मानवीय मदद
अमेरिकी राष्ट्रपति बुधवार 18 अक्टूबर को इजराइल पहुंचे थे। उन्होंने तेल अवीव में इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, प्रेसिडेंट इसाक हर्जोग और वॉर कैबिनेट से मुलाकात की। वे यहां करीब 4 घंटे रहे। अमेरिका रवाना होने से पहले बाइडेन ने गाजा की मानवीय मदद के लिए 100 मिलियन डॉलर की मदद का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि यह सामान हमास के हाथों तक न पहुंच सके।
अमेरिकी राष्ट्रपति के इजराइल से रवाना होते ही वहां दोबारा हमास के हमले होने लगे। भास्कर रिपोर्टर के मुताबिक भारतीय समयानुसार रात 11 बजे तेल अवीव में धमाकों की आवाजें आने लगीं। एक रॉकेट समंदर में गिरा, जिसके बाद वहां बड़ी लहरें उठने लगीं। दूसरी तरफ, सऊदी अरब ने लेबनान में मौजूद अपने नागरिकों से फौरन वहां से निकलने को कहा है।
अब भारत-फिलिस्तीन के बीच के रिश्ते को समझिए …
1948 में 48% फिलिस्तीन के पास था, आज केवल 12% बचा
1948 में फिलिस्तीन को तोड़कर ही इजराइल बना। कुल जमीन का 44% हिस्सा इजराइल और 48% फिलिस्तीन के हिस्से आया। 8% जमीन का टुकड़ा हासिल करके यरुशलम UN की निगेहबानी में आ गया। इजराइल ने ताकत के दम पर फिलिस्तीन की 36% जमीन हथिया ली। आज फिलिस्तीन के पास महज 12% जमीन है और उसमें भी दो टुकड़े हैं- वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी। वेस्ट बैंक शांत है और यहां फिलिस्तीनी सरकार का शासन है।
गाजा पट्टी में हमास का कब्जा है। इसे इजराइल और पश्चिमी देश आतंकी संगठन बताते हैं। भारत ने कभी हमास का समर्थन नहीं किया, लेकिन वो फिलिस्तीन सरकार के साथ है।

फिलिस्तीन और भारत के रिश्ते
1974 में भारत ने फिलिस्तीन लिबरेशन आर्मी (PLO) को फिलिस्तीनी लोगों का ऑफिशियल ऑर्गेनाइजेशन माना और इसे मान्यता दी। यहां ये भी जान लीजिए कि PLO को मान्यता देने वाला भारत पहला गैर अरब देश था।
1969 से 2004 तक यासिर अराफात इसके चेयरमैन रहे। भारत से उनके बहुत दोस्ताना रिश्ते थे और इंदिरा गांधी उन्हें अपना भाई मानती थीं। बाद में यह संगठन यानी PLO बिखरता चला गया। इसकी ताकत कम होती चली गई। यहीं से हमास की नींव पड़ी और 1987 से यह ऑफिशियली खुद को फिलिस्तीनियों की आवाज बताने लगा।
भारत का असमंजस
सही मायनों में भारत का असमंजस यहीं से शुरू हुआ। PLO होते हुए भी रहा नहीं और फिलिस्तीन सरकार हमास के सामने कमजोर थी। फिलिस्तीन सरकार बातचीत से मसला सुलझाना चाहती थी और हमास खून का बदला खून से लेना चाहता था।
हमास के सामने तो आज भी फिलिस्तीनी सरकार घुटने टेके बैठी है, लेकिन है तो वो भी फिलिस्तीन का हिस्सा। लिहाजा, भारत को ऐसा रास्ता खोजना था, जिससे फिलिस्तीनियों को उनका हक भी मिल जाए और हमास का समर्थन भी न करना पड़े। आज भारत की फिलिस्तीन को लेकर जो नीति है, उसका सार भी यही है। कहते हैं- डिप्लोमेसी में जितना कहा नहीं जाता, उससे ज्यादा समझा जाता है।

2018 में नरेंद्र मोदी फिलिस्तीन की ऑफिशियल विजिट करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।
भारत की इजराइल-फिलिस्तीन पॉलिसी सही है या नहीं?
फॉरेन और डिफेंस पॉलिसी एक्सपर्ट हर्ष पंत कहते हैं- वक्त और हालात के हिसाब से फॉरेन पॉलिसी में चेंज जरूरी हो जाते हैं। पहले हम फिलिस्तीन को लेकर ज्यादा वोकल रहते थे और इजराइल को नजरअंदाज कर देते थे। हालांकि तब भी बैकचैनल एंगेजमेंट रहता था। नरसिम्हा राव सरकार के दौर से भारत की इजराइल नीति में बदलाव देखने को मिला। हमें हर दौर में इजराइल से डिफेंस और इंटेलिजेंस मामलों में सपोर्ट मिला है।
फिलिस्तीन : बैलेंसिंग एक्ट ऑफ इंडियन डिप्लोमेसी
1988 में भारत ने फिलिस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। 1996 में गाजा में अपना ऑफिस भी खोला, लेकिन हमास की हरकतें देखकर 2003 में इसे फिलिस्तीन सरकार के एडमिनिस्ट्रेटिव सर्कल में आने वाले रामल्ला में शिफ्ट कर दिया। आज भी ये वहीं है। 2011 में जब फिलिस्तीन को यूनेस्को का मेंबर बनाने की मांग उठी तो भारत ने इसका समर्थन किया। 2015 में फिलिस्तीन का नेशनल फ्लैग UN में लगा, तब भी भारत मजबूती से उसके साथ खड़ा था। 2018 में नरेंद्र मोदी फिलिस्तीन की ऑफिशियल विजिट करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।
इस मुद्दे पर भारत सरकार कितना अलर्ट रहती है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि 2017 में जब मोदी इजराइल की यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री बने तो वे चंद किलोमीटर दूर फिलिस्तीन नहीं गए थे। इसके अगले साल उन्होंने अलग से फिलिस्तीन का दौरा किया। इसे ‘बैलेंसिंग एक्ट ऑफ इंडियन डिप्लोमेसी’कहा गया।
2018 में जब इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भारत आए तो वे यहूदी बालक मोशे से भी मिले थे। 26/11 के मुंबई हमलों में मोशे के माता-पिता आतंकवादियों के हाथों मारे गए थे।

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