भाजपा के लिए आसान नहीं होगा सभी को संतुष्ट कर पाना, NDA के 38 दलों में सीट बंटवारा होगा मुश्किल
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की मंगलवार को दिल्ली बैठक में विभिन्न राज्यों के 38 दलों के नेता शामिल हुए। कुछ महीनों बाद देश में अगला आम चुनाव होना है। इससे पहले कुछ राज्यों की विधानसभाओं के लिए भी चुनाव होने हैं। इतनी बड़ी संख्या में दलों के गठबंधन से मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव और राज्यों की विधानसभा चुनावों के दौरान सीटों का बंटवारा करना बहुत आसान नहीं होगा। हर दल की अपनी मांग और आकांक्षाएं हैं। इनका पूरा करने के लिए कई तरह के त्याग करने पड़ेंगे। जिस पर आम सहमति बनाना नेतृत्व के लिए बहुत मुश्किल होगा। जिस समय एनडीए का गठन हुआ था, तब सिर्फ 24 दल थे और अब यह बढ़कर 38 हो गये हैं।
नीतीश कुमार पिछले चुनाव में NDA में थे, इस बार INDIA के साथ हैं
पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी एनडीए के घटक के रूप में चुनाव मैदान में उतरी थी, इस बार वह विपक्षी गठबंधन INDIA के साथ है। स्व. राम विलास पासवान की पार्टी एलजेपी भी एनडीए में है, लेकिन अब वह दो हिस्सों में बंटी हुई है। एक गुट का नेतृत्व उनके भाई पशुपति पारस कर रहे हैं और दूसरे गुट का नेतृत्व उनके बेटे चिराग पासवान कर रहे हैं। भाजपा दोनों गुट को साथ रखना चाहती है, हालांकि दोनों गुट एक साथ आने पर सहमत होते नहीं दिख रहे हैं।
यही हाल दूसरे दलों का भी है। बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) और हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (HAM) हैं तो महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) और हाल ही में शरद पवार से अलग होकर एनडीए में आया अजित पवार की एनसीपी है। चुनाव के दौरान जब सीटों का बंटवारा होगा, तब सभी दल सम्मानजक संख्या में सीटों की मांग करेंगी। भाजपा के लिए सभी को खुश रखना बहुत मुश्किल होगा।
उत्तर प्रदेश में भाजपा का पुराना सहयोगी अपना दल के साथ ही निषाद पार्टी और कुछ ही दिन पहले साथ आई सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) को भी संतुष्ट कर पाना कठिन होगा। हालांकि इन दलों का जिन इलाकों में प्रभाव है, वहां पर भाजपा खुद को कमजोर पाती है। ऐसे में भाजपा उन क्षेत्रों में इनको सीट देगी, लेकिन इनकी मांग लोकसभा के साथ ही राज्यसभा के लिए भी रहती है।
तमिलनाडु, आसाम, हरियाणा और झारखंड जैसे राज्यों में भी इसी तरह गठबंधन के बीच टकराव की नौबत आ सकती है। विपक्षी दलों का गठबंधन INDIA भी मोदी सरकार से मुकाबले के लिए कमर कसकर मैदान में आ गई है। इस बार विपक्ष पिछली बार के मुकाबले ज्यादा संगठित तौर पर मोदी सरकार से दो-दो हाथ करने के मूड में है।