पढ़ने का मतलब
हम सपनों की तरह जीते हैं। अगर हमारे मित्रों ने वाणिज्य विषय लिया है तो हम भी उसे चुन लेते हैं, उन्होंने विज्ञान संकाय में जाना चुना तो हम भी चुन लेते हैं। इसका उद्देश्य नौकरी पाने तक का होता है।
जनसत्ता
Updated: May 12, 2021 1:49 AM
स्कूलों की शिक्षा और जीवन की शिक्षा का सार्थक उद्देश्य समझे बिना ज्ञान अधूरा है। (Express Photo: Partha Paul)
स्वरांगी साने
हम पढ़ते क्यों हैं? कमाने के लिए। लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति ने हमें उम्दा कारकून बनना सिखा दिया। मगर हमने उससे भी बदतर मार्ग अपने लिए चुन लिया। हमने पढ़ाई को केवल वक्त काटने का जरिया बना दिया। जब कुछ करने के लिए काम न हो तो पढ़ाई कर ली जाए। हमारे लिए पढ़ाई कभी ज्ञान पाने का माध्यम नहीं रही। हां, अपवाद तो हर क्षेत्र में होते ही हैं। सवाल है कि कितने लोग हैं जो अध्ययन का चयन करते हैं। हमारे जीवन में पढ़ाई आकस्मिक घटना की तरह होती है। हमारे पैदा होते ही तय कर दिया जाता है कि हमें क्या बनना है। जिस दौर में जैसा चलन रहे, माता-पिता अपने बच्चे के लिए वैसा ही कॅरियर तय कर देते हैं- भारतीय प्रशासनिक सेवा, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रबंधन यानी एमबीए, विदेश में नौकरी या ऐसा ही कुछ और जैसे किसी की दुकान-फर्म हो तो वहां की कुर्सी पर बैठने वाला अगला कोई। उसके बाद कुछ बड़े होने पर जब हम उस दिशा में खुद को योग्य नहीं पाते, मतलब उन परीक्षाओं में चयन नहीं हो पाता तो हम वह चुनते हैं, जिसका चुनाव हमारे मित्रों ने किया होता है।
हम सपनों की तरह जीते हैं। अगर हमारे मित्रों ने वाणिज्य विषय लिया है तो हम भी उसे चुन लेते हैं, उन्होंने विज्ञान संकाय में जाना चुना तो हम भी चुन लेते हैं। इसका उद्देश्य नौकरी पाने तक का होता है। लड़कियों का अभी भी नौकरी के साथ शादी हो जाने तक का वक्त गुजारना। संभव है कि यह सब सुनने में कटु लगे, लेकिन यही सत्य है। कई बार बहुतेरे लोग खुशी-खुशी बताते हैं कि उनके पास कितनी डिग्रियां हैं, लेकिन क्या डिग्रियों ने उन्हें समझदार बनाया है? उन डिग्रियों से हासिल क्या हुआ?
बड़े-बड़े पाठ्यक्रम और ढेर सारी जानकारियां, लेकिन उनका उपयोग क्या? कोई क्यों पढ़ना चाहता है? बेहतर नौकरी और मोटे वेतन के लिए। व्यवहार में जो है, उसमें यह कहा जा सकता है कि शिक्षा का ज्ञान से कोई संबंध नहीं है। यह ऐसा दु:स्वप्न है जो दिखाता ऐसे है कि इसी से सुनहले सपने सजेंगे। तब बड़े महंगे स्कूलों की महंगी फीस और उसके बाद उच्च अध्ययन के नाम पर और बड़ी फीस। बड़ी फीस ही उच्च स्तरीय शिक्षा का पैमामा मान लिया गया है। उच्च अध्ययन करने से आपको सूट-बूट में रहना आ जाता है, हमेशा पूरी कोशिश करते हुए मुस्कुराते रहना आ जाता है, आप धीमे बोलने लग जाते हैं।
आप बाहरी तौर पर लगभग ऐसे हो जाते हैं, जिससे आप ‘संभ्रांत’ दिखें। ‘संभ्रांत’ दिखने की ख्वाहिश उसी उपनिवेशवाद का बीज है जो हर किसी के मन में बोया जाता है। शिक्षा हमें धनी होने का स्वप्न देती है। धनी होना बुरा नहीं, लेकिन उसका अर्थ केवल पैसे कमाने के साधनों से होता है। धनी व्यक्ति मन से होता है कि किसी का मन कितना बड़ा है। धनी व्यक्ति विचारों से होता है कि उसके विचार कितने समृद्ध हैं। धनी उन किताबों से होता है, जिन्हें पढ़ा जाता है, न कि उन किताबों से जिसका रट्टा मारा जाता हो।
स्कूली दिनों में वे विद्यार्थी मेधावी समझे जाते हैं, जिन्हें पहले पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक हर शब्द कंठस्थ हो। परीक्षा में सारे प्रश्नों के उत्तर उसी तरह दे दें, जैसे किताबों में छपे हैं। अंकों का गणित यहीं से समझा दिया जाता है। किसे कितने अंक आए, उतना वह बड़ा होशियार, जबकि होशियारी दिमाग के अंदर कितना पक्का बैठा है, उससे निर्धारित होना चाहिए। कक्षा में प्रथम आने वाले विद्यार्थी कई बार जीवन की रफ्तार में पीछे रह जाते हैं। उसकी वजह यही होती है कि तोता रटंत तो उन्होंने कर ली थी, लेकिन तोते की तरह ही जो बोलते हैं, उसका अर्थ-बोध उन्हें न हुआ। नई शिक्षा नीति बहुत से बदलावों के साथ आई है, लेकिन जरूरत तो उस ढांचे को तोड़ने की है, जो परीक्षा प्रणाली पर निर्भर है।
कई बार ऐसा होता है कि परीक्षा के दिनों में ही साल भर पढ़ने वाला विद्यार्थी अपना मनोबल खो देता है। साल भर की गतिविधि के आधार पर अंक, ग्रेड जैसी कितनी व्यवस्था कर भी ली, तो व्यवस्था की चौखट तो बनी ही रही।
पढ़ाई तो ऐसी होनी चाहिए जिसका उपयोग उन्हें जीवन भर होता रहे। अद्यतन होते रहने की तो कोई सीमा नहीं है। जिस क्षेत्र में आप जाएं, उस क्षेत्र में ज्ञान की अनंत संभावनाएं होती हैं, लेकिन कम से कम वे डिग्रियां, वे मोटी-मोटी किताबें, नोटबुक में लिखे सारी टिप्पणियां बाद के जीवन में उपयोगी तो होनी चाहिए। ऐसा तो न लगे कि जो पढ़ा, वह जीवन में काम नहीं आया और जीवन में जो कर रहे हैं, वह कभी पढ़ा ही नहीं, पढ़ाया गया ही नहीं।
तो हमारी स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए जो न केवल हमें सही इंसान बनाए, सिर्फ कोई मैनेजर नहीं। हमें उचित ज्ञान प्रदान करे, केवल जानकारियां नहीं दे। हमें ज्ञान का अंहकार न दे, महान बन जाने का प्रदर्शन न दे, वास्तव में ज्ञान दे, वास्तव में महान बनाए और हमारे भीतर थोड़ी नादानी भी रहने दे।