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जो बात पटना में नहीं बनी, क्या सोनिया गांधी की मौजूदगी बेंगलुरु में काम करवा देगी? विपक्षी एकता की दूसरी बैठक से पहले कांग्रेस की चाल

विपक्षी एकता की तस्वीर कैसी होगी, इसकी पहली झलक पटना में देखने को मिल गई थी। लेकिन उस समय जितने दिल मिले, उतने विवाद भी सामने आ गए । केजरीवाल की कांग्रेस से लड़ाई, एनसीपी में दो फाड़ और बंगाल में ममता के साथ अधीर रंजन की तल्खी, ये सब बताने के लिए काफी था कि साथ आए हैं, लेकिन दिल मिलने अभी बाकी हैं।

सोनिया गांधी के आने के मायने

अब उसी कड़ी में विपक्षी एकता की दूसरी बड़ी बैठक बेंगलुरु में होने जा रही है। बैठक की अगुवाई कांग्रेस कर रही है, सभी के लिए डिनर का आयोजन सीएम सिद्धारमैया कर रहे हैं, यानी कि लाइमलाइट बटोरने की पूरी तैयारी है। अब बेंगलुरु बैठक में एक और बड़ा फैक्टर साथ जुड़ने वाला है- सोनिया गांधी। सक्रिय राजनीति से कुछ समय से दूर चल रही हैं, सेहत भी ज्यादा नासाज नहीं है। लेकिन फिर भी सोनिया बेंगलुरु बैठक में हिस्सा ले सकती हैं।

सोनिया के लिए अवसर, कांग्रेस के लिए क्या?

सोनिया गांधी का मौजूद रहना इसलिए मायने रखता है क्योंकि राजनीति में उनकी पारी भी अब कई दशक पुरानी हो गई है, जैसा व्यक्तित्व है, कई नेताओं के साथ अच्छे संबंध हैं, कई विपक्षी पार्टियों के साथ समय-समय पर सरकार बनाई है। ऐसे में सोनिया का बैठक में होना ही काफी कुछ बदल सकता है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अभी तक चेहरे को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन सोनिया गांधी को एक बार फिर यूपीए का चेयरपर्सन बनाया जा सकता है।

दूसरे दलों पर तनाव, अनुभव बनाम नए चेहरे

कांग्रेस को समर्थन करने वाले दल तो इस प्रस्ताव को मान सकते हैं, लेकिन जो दल सपोर्ट नहीं करते हैं, उनका फैसला मायने रखता है। माना ये जा रहा है कि सोनिया गांधी जैसी दिग्गज नेता का बैठक में आना कई दूसरे दलों के लिए किसी एक चेहरे को चुनना मुश्किल साबित कर सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अनुभव के आधार पर वे कई नेताओं से आगे हैं, उनसे ज्यादा अनुभवी वाली श्रेणी में शरद पवार आते हैं।

छोटी पार्टियों को साथ लाने पर जोर

वैसे सोनिया के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी दूसरी विपक्षी एकता वाली बैठक के लिए अलग ही तैयारी कर रहे हैं। सिर्फ बड़े दलों को साथ लाने की बात नहीं हुई है, बल्कि कई छोटे दलों को भी न्योता दे दिया गया है, दिखाने की कोशिश है कि जब बात बीजेपी को हराने की होगी, तो सभी साथ आएंगे। इसी वजह से बेंगलुरु वाली बैठक में इस बार केरल कांग्रेस (एम), केडीएमक, एमडीएमके, वीसीके, RSP जैसे दलों को भी बुलाया गया है।

केजरीवाल के आने पर सस्पेंस

अब इतने सारे दलों को साथ लाने की बात हो रही है, लेकिन आम आदमी पार्टी के शामिल होने पर सस्पेंस बना हुआ है। कारण सिंपल है- दिल्ली अध्यादेश पर अभी तक कांग्रेस ने अपना स्टैंड साफ नहीं किया है, ऐसे में आप भी ऐसी किसी भी बैठक में शामिल नहीं होना चाहती है। अब विपक्षी एकता वाली दूसरी बैठक तो 17-18 जुलाई को होने जा रही है। उस बैठक में क्या फैसला लिया जाएगा, उसी पर आप का भविष्य टिका होगा।

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