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जब अजमेर दरगाह के रसूखदारों पर लगा बलात्कार का आरोप, अब इस घटना पर आ रही है फिल्म

सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का स्थान अजमेर अभी भी 1992 के एक मामले को नहीं भूला है। अब इस मामले और उसके बाद की घटनाओं को एक फिल्म ‘अजमेर 92’ में दिखाया जाएगा। फिल्म 21 जुलाई को रिलीज होने वाली है।

घटनाओं की उस पूरी श्रृंखला में पावरफुल और राजनीतिक रूप से बड़े कद के व्यक्तियों ने सैकड़ों लड़कियों को न सिर्फ ब्लैकमेल किया था। बल्कि उनका यौन शोषण भी किया था। उनमें से कई का शहर में सूफी दरगाह से भी संबंध था।

यह मामला तब प्रकाश में आया जब अप्रैल 1992 में एक स्थानीय पत्रकार संतोष गुप्ता ने इस पर रिपोर्ट की। इस घटना से जुड़े कुछ अदालती मामले अभी भी चल रहे हैं।

संतोष गुप्ता की रिपोर्ट ने कई वर्षों तक चले यौन शोषण के चक्र का विवरण दिया था, जो 1992 में समाप्त हुआ। स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियों को बहला-फुसलाकर दूरदराज के स्थानों पर ले जाया गया, जहां एक या कई पुरुषों द्वारा उनका बार-बार यौन उत्पीड़न किया गया।

पुलिस के अनुसार, बलात्कार के दौरान लड़कियों की तस्वीर खींच ली जाती थी। उसके बाद उन तस्वीरों को दिखाकर, उनके साथ बार-बार बलात्कार किया जाता था और चुप रहने के लिए ब्लैकमेल किया जाता है।

यह अपराध तब प्रकाश में आया जब फोटो लैब ने कुछ तस्वीरें लीक कर दीं। यह वही लैब था, जहां बलात्कारी कैमरे की रील को तस्वीर में तब्दील कराते थे। जब लीक फोटो पत्रकार संतोष गुप्ता के हाथ लगी तो उन्होंने स्थानीय दैनिक अखबार ‘नवज्योति न्यूज़’ में पीड़ितों की धुंधली तस्वीर के साथ रिपोर्ट छाप दी।

Ajmer

मुश्किल था लड़कियों को गवाही के लिए राजी करना

राजस्थान के सेवानिवृत्त डीजीपी ओमेंद्र भारद्वाज ने 2018 में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, “आरोपी सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली थे और इससे लड़कियों को आगे आने और गवाही देने के लिए राजी करना और भी मुश्किल हो गया था।”

लंबी जांच के बाद कुल 18 लोगों पर आरोप लगाए गए, उनमें से कुछ प्रभावशाली खादिमों के परिवारों से थे, जो दरगाह में सेवा करते हैं और खुद को सूफी संत के मूल अनुयायियों के वंशज बताते हैं।

इन 18 लोगों में सबसे प्रमुख फारूक और नफीस चिश्ती थे। ये दोनों युवा कांग्रेस के नेता और लगभग स्थानीय “सेलिब्रिटी” थे, जो छोटे शहर में अपनी शक्ति और धन का प्रदर्शन कर रहे थे।

कौन थी पहली लड़की?  

पत्रकार संतोष गुप्ता बताते हैं, उन्होंने अपनी रसूख का इस्तेमाल कर लड़कियों को फंसाया। ये लोग पहले युवा लड़कियों को रिझाते थे और फिर उन्हें शिकार बनाते थे। बताया जाता है कि फारूक ने ही सबसे पहले अजमेर के सोफिया सीनियर सेकेंडरी स्कूल की एक लड़की को अपने जाल में फंसाया और उसकी अश्लील तस्वीरें खींच लीं। बाद में अदालतों में उसे मानसिक रूप से अस्थिर घोषित कर दिया गया।

1998 में अजमेर की एक सत्र अदालत ने आठ लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन 2001 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने उनमें से चार को बरी कर दिया। 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने अन्य चार दोषियों मोइजुल्लाह उर्फ पुत्तन, इशरत अली, अनवर चिश्ती और शमशुद्दीन उर्फ मेराडोना की सजा घटाकर 10 साल कर दी। छह लोगों पर अभी भी मुकदमा चल रहा है और एक आरोपी अल्मास महाराज, फरार है। ऐसा माना जाता है कि वह अमेरिका में है। उसके खिलाफ सीबीआई ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया है।

पीड़ितों की अग्निपरीक्षा

मामले की डिटेल्स सार्वजनिक होने के बाद अजमेर में अराजकता फैल गई। विरोध प्रदर्शनों के कारण शहर को दो दिनों के लिए बंद कर करना पड़ा था। डर था कि सांप्रदायिक दंगे हो सकते हैं क्योंकि अधिकांश आरोपी मुस्लिम थे और कई पीड़िता हिंदू।

हालांकि, जैसे ही मुकदमा शुरू हुआ अधिकांश पीड़िता अपने बयान से मुकर गईं। जबकि पुलिस को संदेह था कि पीड़ितों की संख्या 50 से 100 के बीच है। लेकिन केवल कुछ ही गवाही देने के लिए आगे आईं। बहुत कम लोग अभी भी अपने बयानों पर कायम हैं।

पीड़ितों से जुड़ी सभी चीजों को कलंकित माना जाने लगा। जिन संस्थानों में लड़कियां पढ़ती थीं, उन्हें भी हेय दृष्टि से देखा जाने लगा। अजमेर की पूर्व निवासी लेखिका अनुराधा मारवाह ने इस मामले पर एक किताब लिखी है। उन्होंने साल 2018 में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, “मेरी मां ऐसे ही एक कॉलेज की डिप्टी-प्रिंसिपल थीं। मुझे याद है कि एक दिन वह रोते हुए घर आयीं और बताया कि एक युवा लड़की, जो पीड़ितों में से एक थी, उसने आत्महत्या कर ली। यह मामला एक जख्म की तरह था जिसे भरने नहीं दिया गया।”

संतोष गुप्ता इस मामले में अधिकारियों के नजरिए को पीड़ितों के साथ हुई परेशानी का दोषी मानते हैं। उन्होंने कहा, शुरुआत से ही पुलिस ने पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के बजाय, उन्हें रोकने पर अधिक ध्यान दिया। दरअसल, पुलिस का ऐसा मानना था कि इस मामले के सामने आने से ‘कानून व्यवस्था’ बिगड़ सकती है।

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