गुलाम नबी आजाद ने बना लिया है BJP से गठबंधन का मूड? क्या हिन्दू वोटों पर है नजर, जानिए पूरी कहानी
कभी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे गुलाम नबी आजाद इन दिनों अपने अलग-अलग बयानों को लेकर चर्चा में हैं। जहां एक तरफ वह कहते हुए सुनाई दिए कि वोट मांगने के लिए धर्म का इस्तेमाल कमजोर लोग करते हैं। वहीं उन्होंने इस सप्ताह की शुरुआत में डोडा जिले के चिराला में बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत में मुसलमान बाहर से नहीं आए हैं और ज्यादतर ने हिन्दू धर्म छोड़कर इस्लाम कबूल किया है। गुलाम नबी आजाद ने इस दौरान कश्मीर को लेकर कहा था कि 600 साल पहले कश्मीर में कोई मुसलमान नहीं था जबकि सब के सब तो कश्मीरी पंडित थे, बाद में वो मुसलमान बन गए।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर गुलाम नबी आजाद के सुर बदले-बदले क्यों दिखाई देने लगे हैं और उनके इन ताज़ा बयानों के सियासी मायने क्या हैं? चर्चा यह भी है कि गुलाम नबी आजाद की भाजपा से नज़दीकियां बढ़ रही हैं।
जम्मू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर का क्या कहना है?
गुलाम नबी आज़ाद की टिप्पणियों का जिक्र करते हुए जम्मू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर, प्रोफेसर हरिओम (अलग जम्मू राज्य की मांग के जाने-माने समर्थक) ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में पूछा, “गुलाम नबी आजाद ने ये बयान क्यों दिए? क्या वह वोटों के लिए भोले-भाले हिंदुओं को मूर्ख बना रहे हैं और उनकी आंखों में धूल झोंक रहे हैं और भाजपा के साथ गठबंधन पर विचार कर रहे हैं?”
जम्मू-कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों की अपनी यात्रा के दौरान गुलाम नबी आज़ाद अपनी सभी सार्वजनिक बैठकों में दावा करते रहे हैं कि वह वोट नहीं मांग रहे हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव नजदीक नहीं हैं, उनके बयानों को इससे जोड़कर नहीं देखा जाए।
हालांकि आने वाले महीनों में जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित नागरिक और पंचायत निकायों का पांच साल का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा। केंद्र शासित प्रदेश भर में मौजूदा नगर पालिकाओं का कार्यकाल इस साल 15 नवंबर को और पंचायतों का कार्यकाल 9 जनवरी, 2024 को समाप्त हो रहा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि इन चुनावों पर उनकी नज़र हो।
370 पर क्यों की थी फारूक अब्दुल्लाह और अन्यों की आलोचना?
डोडा जिले के अपने एक सप्ताह के दौरे के दौरान आज़ाद ने पहले अगस्त 2019 में केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का विरोध करने वालों की आलोचना की थी। गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वे यूटी का का इतिहास और भूगोल नहीं समझते। उनका हमला फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसे क्षेत्रीय दलों था। तब आजाद ने कहा था, “अनुच्छेद 370 किसी विशेष क्षेत्र, प्रांत या धर्म के लिए नहीं था, बल्कि सभी के लिए समान रूप से लाभकारी था।”
क्या भाजपा से कर लेंगे गठबंधन?
गौरतलब है कि गुलाम नबी आजाद ने पिछले साल 26 अगस्त को अपनी पार्टी बनाने के लिए पांच दशक लंबे जुड़ाव के बाद कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था। वह शुरू में अनुच्छेद 370 मुद्दे पर किसी भी टिप्पणी से बचते रहे थे, उनका कहना था कि इसकी बहाली “असंभव” थी। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने इसे खत्म कर दिया है और इसे बहाल नहीं करेगी। वह कहते रहे हैं कि उन्हें नहीं लगता कि निकट भविष्य में कांग्रेस 300 से अधिक सीटों के साथ सत्ता में आएगी और इसे बहाल करेगी। उन्होंने कहा कि मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है और लोगों को इसके फैसले का इंतजार करना चाहिए।
यूनिफ़ोर्म सिविल कोड को लेकर गुलाम नबी आजाद भाजपा सरकार को आगाह करते हुए कहा था कि यह सभी समुदायों को प्रभावित करेगा।
क्यों हिन्दू वोट साधना चाहते हैं आज़ाद?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि आज़ाद को पता है कि जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए उन्हें केंद्र सरकार के करीब रहने के अलावा केंद्र शासित प्रदेश में मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदायों का समर्थन हासिल करने की ज़रूरत है।
74 वर्षीय आज़ाद जम्मू क्षेत्र की मुस्लिम बहुल चिनाब घाटी से हैं, जहाँ लगभग 40-45 प्रतिशत हिंदू आबादी है। कई लोगों का मानना है कि हालिया परिसीमन प्रक्रिया के दौरान इस बेल्ट में तीन विधानसभा क्षेत्रों को जोड़ने से भाजपा को फायदा हुआ है।
इसलिए ही गुलाम नबी आजाद मुस्लिम और हिंदू दोनों मतदाताओं तक पहुंच बना रहे हैं। उनके एक पूर्व वफादार ने कहा, “भले ही आजाद चुनाव में नहीं जीते, लेकिन वह गैर-भाजपा वोटों, खासकर कांग्रेस वोटों को विभाजित करके भाजपा की मदद करेंगे।”
2020 में हुए पहले जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनावों में 74 सीटों के साथ भाजपा यूटी में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, भले ही गुपकर गठबंधन, जिसमें एनसी और पीडीपी शामिल हैं ने इसमें अपने संयुक्त उम्मीदवार उतारे थे।