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एक बैठक… अमित शाह की मौजूदगी और NCP में दो फाड़, अजित ने ऐसे ही नहीं की बगावत, ये है Inside Story

महाराष्ट्र की सियासत में जो बड़ा उलटफेर हुआ है, उसने कई समीकरण जमीन पर बदल दिए हैं। इस समय एनसीपी नेता अजित पवार इस उलटफेर के केंद्र में दिखाई दे रहे हैं। लेकिन इस सियासी पिक्चर के और भी कई किरदार हैं। एक किरदार तो गृह मंत्री अमित शाह भी हैं। उनकी एक बैठक ने इस बगावत को हरी झंडी दिखाने का काम किया था, यानी कि इस उलटफेर की इनसाइड स्टोरी में काफी कुछ छिपा हुआ है।

अमित शाह के साथ ‘सीक्रेट मीटिंग’

असल में बताया जा रहा है कि पिछले हफ्ते गृह मंत्री अमित शाह से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस की एक अहम मुलाकात हुई थी। ये मीटिंग राजधानी दिल्ली में की गई थी जहां पर अजित पवार को लेकर मंथन किया गया था। अब बीजेपी ने तो इसे लेकर कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन क्योंकि ये फैसला काफी अहम था, कई समीकरण बदलने वाला था, ऐसे में अमित शाह की सक्रियता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

मीटिंग में हुआ क्या था?

जो जानकारी मिल रही है, उसके मुताबिक पिछले महीने 29 जून को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस दिल्ली रवाना हुए थे। वहां पर दोनों ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की, महाराष्ट्र की वर्तमान स्थिति से उन्हें अवगत करवाया और फिर एनसीपी में चल रही बगावत की जानकारी दी। उस जानकारी के बाद ही अजित पवार पर फैसला लिया गया और एनसीपी में दो फाड़ की स्क्रिप्ट को शाह की मौजूदगी में फाइनलाइज कर दिया गया। बड़ी बात ये रही उस बैठक के तुरंत बाद उसी दिन दोनों शिंदे और फडणवीस वापस मुंबई के लिए रवाना हो गए थे।

बीजेपी को अजित से क्या फायदा?

अब ये एक सीक्रेट मीटिंग ही बताने के लिए काफी है कि महाराष्ट्र के सियासी खेल में अमित शाह ने भी अपनी एक भूमिका निभाई है। वैसे बीजेपी को इस उलटफेर से एक नहीं दो फायदे हो रहे हैं। एक तरफ 2024 के लोकसभा चुनाव में अब महाराष्ट्र की 48 सीटों पर पार्टी खुद को पहले से ज्यादा मजबूत महसूस करेगी, तो वहीं दूसरी तरफ जिस विपक्षी एकता की पिछले कई दिनों से कवायद चल रही है, उसमें भी बड़ी सेंधमारी लगेगी।

बिना शिंदे भी अब बीजेपी मजबूत?

वैसे जानकार तो ये भी मानते हैं कि सीएम एकनाथ शिंदे की बढ़ती ताकत को सीमित करने के लिए अजित पवार का इस्तेमाल किया जा रहा है। उनका साथ आना बीजेपी को पॉवर गेम को कुछ हद तक बैलेंस करने का एक मौका दे देगा। इसके अलावा अभी तक विधायकों की अयोग्यता पर भी कोई फैसला नहीं आया है, ऐसे में शिंदे सरकार के लिए असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अब जब अजित वाली एनसीपी का साथ मिल गया तो उस स्थिति में विधानसभा में बीजेपी के पास बिना शिंदे के भी मजबूत नंबर मौजूद है।

क्या अजित की हो जाएगी एनसीपी?

वर्तमान में एनसीपी के पास विधानसभा में कुल 53 विधायक हैं। अजित खेमे के नेता दावा कर रहे हैं कि उनके पास 40 विधायकों का समर्थन है, अजित तो एक कदम आगे बढ़कर कह रहे हैं कि सभी उनके साथ खड़े हैं। अब 53 का दो तिहाई होता है 36, यानी कि अजित को ये आंकड़ा तो किसी भी कीमत अपने साथ चाहिए। अभी के लिए दावों के मुताबिक उनके पास पर्याप्त नंबर है, ऐसे में दल-बदल कानून के कई नियमों से उन्हें सुरक्षा मिल सकती है।

अब सवाल ये उठता कि चुनाव आयोग ऐसी परिस्थिति में किसे सपोर्ट करता है। जिसने बगावत की, क्या उसे मान्यता दी जाती है, या फिर जिसके साथ धोखा हुआ होता है, उसके पक्ष में फैसला जाता है। अब यहां भी दल बदल कानून के सहारे ही चुनाव आयोग भी कोई फैसला देता है। इस समय अजित पवार ने एनसीपी में टूट तो कर दी है, लेकिन क्या ये दो तिहाई वाली है? दावों में जरूर ऐसा कहा जा रहा है, लेकिन शरद पवार ने अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं।

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