एक देश, एक मतदाता सूची की तैयारी:एक देश, एक चुनाव पर समिति नामांकन विधि; राज्यों की लेंगी होगी सहमति
एक देश, एक वोटर लिस्ट की तैयारी:एक देश, एक चुनाव पर बनी समिति सरकार का रास्ता; राज्यों की लेंगी होगी सहमति
नई दिल्ली4 घंटे पहलेलेखक:अनिरुद्ध शर्मा
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सरकार ने तीन स्तरों (लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों) के चुनाव के लिए एक ही सूची का रोडमैप तैयार किया है।
‘एक देश-एक चुनाव’ की चर्चा के बीच केंद्र सरकार ने ‘एक देश-एक वोटर लिस्ट’ लागू करने की तैयारी भी शुरू कर दी है। उन्हें अब अमिर्ज़ामत समिति की रिपोर्ट का इंतज़ार है। ‘एक देश-एक चुनाव’ पर विचार और सुझाव के लिए बनी मतदाता सूची को लागू करने के लिए भी सुझाव दिए गए हैं।
सरकार ने तीन स्तरों (लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों) के चुनाव के लिए एक ही सूची का रोडमैप तैयार किया है। इसमें सभी राज्यों को सहमति देने की योजना है। इसके लिए न सिर्फ इलेक्ट्रोनिक आयोग के नामांकन सूची तैयार करने के तरीकों में बदलाव होगा, बल्कि राज्यों के चुनावी विधायी कानून में भी बदलाव की जरूरत होगी।
लॉ कमीशन और चुनाव आयोग ने की थी लॉज
लॉ कमीशन और चुनाव आयोग से काफी पहले ‘एक देश-एक वोटर लिस्ट’ की वकालत की जा चुकी है। अगस्त में संसदीय समिति ने सरकार से परामर्श कर संवैधानिक असैन्यों को ध्यान में रखते हुए इसे लागू करने की योजना बनाई थी।
संविधान के अनुच्छेद 325 के तहत अंतिम स्थिति में देश में एक सूची लागू करना केंद्र सरकार के गुट से बाहर है। अभी व्होमो, क्षेत्र, स्थानीय निकाय के लिए अलग-अलग सूची है।

2024 के आम चुनाव पर 1.20 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
वो सब कुछ, जो आपके लिए जानना जरूरी है…
अभी क्या व्यवस्था है?
लोकसभा-विधानसभा चुनाव भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) की जिम्मेवारी है। जबकि नगर निगम, नगर पालिका परिषद और ग्राम पंचायत जैसे स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोग के सदस्यों में शामिल हैं। दोनों वास्तुशिल्पियों को संविधान ने अपनी-अपनी पोथी सूची बनाने का अधिकार दिया है।
ईसीआई के मतदान केंद्रों पर स्थानीय स्थानीय निकाय वार्डों और उपभोक्ताओं के ग्राहकों का मेल होना जरूरी नहीं है। राज्य आयोग आम तौर पर ईसीआई की सूची को ड्राफ्ट की तरह इस्तेमाल करता है। वे अपने डेटा को शामिल करते हैं और अपना दावा-आपत्तियां बुलाते हैं। फिर अंतिम सूची जारी होती है।
नया प्रस्ताव क्या है?
जिस तरह की संसदीय सीट के दायरे के खंड में अल्पसंख्यक रहते हैं, ठीक उसी तरह के वार्ड और समुच्चय की समानता भी विधानसभा की सीटों के दायरे में ही रहती है। इसके लिए राज्यों का चुनावी कानून बदला जाएगा।

ईसीआई के मतदान केंद्रों पर स्थानीय स्थानीय निकाय वार्डों और उपभोक्ताओं के ग्राहकों का मेल होना जरूरी नहीं है।
एकल मतदाता सूची में समस्या कहाँ है?
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कमिश्नर रावत के अनुसार, 2002 में संविधान संशोधन कर यह बंदिश लगाई गई थी कि 2026 के बाद सिद्धांतों के आंकड़ों पर विचार नहीं किया जाएगा। लेकिन राज्यों के अधिनियम में नगरपालिका और पंचायत के लिए यह बंदिश नहीं थी। एक सूची के लिए नगर पालिका और पंचायत अधिनियम में भी यह बंदिश लगानी होगी।
राज्यों की अलग सूची क्यों?
राज्य ईसीआई की सूची का उपयोग योग्यता तिथि के आधार पर नहीं किया जा सकता है। राज्यों की सूची में शामिल की योग्यता की तारीख होने की तारीख एक जनवरी है। यानी 2 जनवरी या उसके बाद उनकी उम्र 18 साल पूरी हो गई तो उन्हें एक साल का इंतजार करना पड़ा। जबकि केंद्र सरकार ने कानून संशोधन कर योग्यता की 4 तारीखें तय कर दी हैं। ये 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर हैं।
अभी ये है स्थिति..
9 राज्य- यूपी, उत्तराखंड, ओडिशा, असम, मप्र, केरल, नारियल, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर ईसीआई की राज्य सूची का उपयोग नहीं किया गया। वे विशिष्ट सूची हैं।
तमिलनाडु, चंडीगढ़, दिल्ली और अंडमान-निकोबार ईसीआई की ताजा वोटिंग सूची, जिला गुजरात ईसीआई की अंतिम सूची और बाकी 17 राज्यों की ईसीआई की ड्राफ्ट सूची का उपयोग किया जाता है।

लोकसभा से लेकर विधानसभा और स्थानीय निकाय तक सभी चुनावी साथ तकनीशियनों का भी कुल खर्च 10 लाख करोड़ रुपए तक हो सकता है।
इन नामांकन से पांच लाख करोड़ तक एक चुनाव संभव
सेंटर फ़ॉर मीडिया स्टडीज के प्रमुख, नॉर्थ ईस्ट एन. भास्कर राव का दावा है कि ‘लोकसभा से लेकर विधानसभा तक और स्थानीय निकाय से लेकर सभी चुनावी विधायकों तक का कुल खर्च 10 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है।
- 2024 के आम चुनाव पर 1.20 लाख करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।
- देश में विधानसभा चुनाव भी हो तो 3 लाख करोड़ रुपए खर्च हो सकते हैं। कुल क्षेत्रफल 4500 है।
- निकायों के चुनाव के साथ हों तो 1 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्चा। लाशों के 500 पादरी हैं।
- इसी तरह जिला परिषद (650 लाख रुपए), मंडल (7000 लाख रुपए) और ग्राम पंचायत (2.5 लाख रुपए) भी साथ हों तो 4.30 लाख करोड़ रुपए खर्च हो सकते हैं।
हालांकि वोटिंग अवधि एक सप्ताह हो और मशीनरी तकनीक का मार्गदर्शन करने से यह खर्च 3 से 5 लाख करोड़ रुपये रह सकता है। हालाँकि, वे कहते हैं कि सिर्फ एक साथ चुनाव से ही खर्च कम नहीं होगा। इसमें आदर्श आचार संहिता का उपदेश से पालन अहम भूमिका निभाएगा।