आर्टिकल 370 पर सुनवाई करेंगे CJI, चंद्रचूड़ ने बनाई नई संवैधानिक बेंच
आर्टिकल 370 के विरोध में दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फिर से सुनवाई करने का मन बना लिया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने इसके लिए एक नई संवैधानिक बेंच का गठन किया है। 11 को नई बेंच सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने आखिरी बार दिसंबर 2019 में आर्टिकल 370 के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई की थी। 2 मार्च 2020 के बाद से सुप्रीम कोर्ट में ये केस लिस्ट तक नहीं हो सका है।
आर्टिकल 370 को लेकर केंद्र ने अगस्त 2019 में नोटिफिकेशन जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट में ये मामला गया तो दिसंबर 2019 में सुनवाई की गई। तब पांच जजों की बेंच के पास ये केस गया था। उस समय ये सवाल उठा था कि क्या इस मसले को संवैधानिक बेंच के पास भेजा जाए, क्योंकि प्रेमनाथ कौल बनाम संपथ प्रकाश मामले में दो विभिन्न मत देखने को मिले थे। आखिरी बार ये केस दो मार्च 2020 को लिस्ट हुआ था। तब फैसला हुआ था कि इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने की कोई तुक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में 2 मार्च 2020 को आखिरी बार लिस्ट हुआ था केस
फिलहाल जो बेंच 11 जुलाई को मामले की सुनवाई करेगी उसमें सीजेआई के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं। 2 मार्च 2020 के बाद इस मामले का सुप्रीम कोर्ट में कई दफा जिक्र हुआ लेकिन इसे लिस्ट करने को लेकर कभी कोई पुख्ता बात सामने नहीं आई।
चंद्रचूड़ के सामने दो बार हुआ जिक्र पर केस को लिस्ट करने पर नहीं बनी सहमति
एनवी रमना सीजेआई थे तो उन्होंने इस केस को लिस्ट कराने के मामले में कभी कोई ठोस जवाब नहीं दिया। यूयू ललित के सीजेआई रहते सितंबर 2022 में 370 से जुड़ी याचिकाओं को लिस्ट करने पर सहमति बनी थी। लेकिन सुनवाई नहीं हो सकी। उनके रिटायर होने के बाद सीजेआई चंद्रचूड़ के सामने दो बार इस केस का जिक्र हुआ लेकिन कोई फैसला नहीं हो सका। पिछली जिस बेंच ने मामले की सुनवाई की थी उसके सदस्यों में से एनवी रमना और सुभाष रेड्डी रिटायर हो चुके हैं। बेंच के नए सदस्यों में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना हैं।
गौरतलब है कि आर्टिकल 370 के जरिये जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल था। लेकिन 2019 में मोदी 2.0 में इसे खत्म कर दिया गया। इसके मुताबिक संसद को राज्य में कानून लागू करने के लिए जम्मू और कश्मीर सरकार की मंजूरी की आवश्यकता है – रक्षा, विदेशी मामलों, वित्त और संचार के मामलों को छोड़कर। लेकिन केंद्र ने 5 अगस्त 2019 को इसे खत्म कर दिया। उसके बाद से विवाद जारी है।