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असम-अरुचल के बीच अंर्तराज्यीय सीमा विवाद सुलझाएं:दिल्ली में शाह के सामने दोनों राज्यों के राज्यों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए

असम-अरुणाचल के बीच अंर्तराज्यीय सीमा विवाद सुलझाएं:दिल्ली में शाह के सामने दोनों राज्यों के पंजीकरण पर हस्ताक्षर किए गए हैं

नई दिल्ली4 दिन पहले

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असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच लंबे समय से चल रहे अंर्तराज्यीय सीमा विवाद को सुलझा लिया है। गुरुवार को असम के हिमंत बिस्वा सरमा और अरुणाचल के टास्क पेमा खांडू ने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) के एक समझौते मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर किए।

इस दौरान अमित शाह ने कहा कि समाधान के लिए समझौते पर हस्ताक्षर होना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। आज हमने एक विकसित, कार्य और संघर्ष-मुक्त की स्थापना के लिए मीलों का पत्थर पार कर लिया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शाम शर्मा के प्रेसीडेंसी में गुवाहाटी में स्टेट कैबिनेट की मीटिंग के दौरान यह फैसला लिया गया था।

असम और अरुणाचल प्रदेश के भागीदार ने शाह अमित की मौजूदगी में समझौते पर हस्ताक्षर किए।

असम और अरुणाचल प्रदेश के भागीदार ने शाह अमित की मौजूदगी में समझौते पर हस्ताक्षर किए।

2022 में असम और मेघालय की सीमा का विवाद सुलझ गया था
इससे पहले मार्च 2022 में असम और मेघालय सरकार ने 50 साल पुराने सीमा विवाद को समझौते पर हस्ताक्षर कर सुलझाया था।

1972 से शुरू हुआ था असम-अरुणाचल अंर्तराज्यीय सीमा विवाद
1979 से असम के 1,000 वर्ग किमी मैदानी क्षेत्र पर अरुणाचल प्रदेश दावा करता था। अरुणाचल और असमंजस के बीच 804.1 किमी लंबी सीमा है। 1972 में असम से अलग अरुणाचल राज्य बना। 1972 और 1979 के बीच 396 किलोमीटर की पट्टी तय की गई थी, पर सर्वे को लेकर विवाद हुआ और अटक गया। 1951 की एक अधिसूचना को लागू किया गया था, जिसे अस्पष्ट रूप से स्वीकार नहीं किया जा रहा था।

1951 में केंद्र सरकार ने बोर्डोलाई कमेटी बनाई थी। इस समिति ने 3,648 किमी क्षेत्र क्षेत्र (आज का दरांग, धेमाजी और जोनोई जिले) को असम में प्रवास करने का सुझाव दिया था। अरुणाचल का कहना है कि इस प्रक्रिया में उनकी राय नहीं ली गई। जिन क्षेत्री सीमा को असम्बद्ध किया गया है, वहां अरुणाचल के लोग रहते हैं और उनके कस्टम और पारंपरिक राइट्स इन क्षेत्रों में हैं। क्षेत्र के अहोमलरों को भी इसकी मान्यता दी गई थी।

कई बार समाधान की कोशिशें पहले भी हुईं
1979 में दोनों समूहों ने एक संयुक्त समिति बनाई थी, पर कोई हल नहीं निकला। 1983 में अरुणाचल ने असमंजस को प्रस्ताव भेजकर 956 वर्ग वर्ग जम गया। 1989 में असम सरकार ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में दीवानी मुकदमा दायर किया।

2007 में तरुण चटर्जी कमीशन के सामने अरुणाचल ने प्रस्ताव में 956 वर्ग किमी से बढ़ाकर 1,119.2 वर्ग किमी क्षेत्र पर दावा किया। 2009 में असम ने यह दावा खारिज कर दिया। कहा जाता है कि चटर्जी कमीशन ने अरुणाचल के 70%-80% दावे को स्वीकार कर लिया था। इसके बाद 2005 से 2014 के बीच दोनों राज्यों में तनाव और हिंसा भी हुई थी।

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