विदेश में साख
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उस समय समझदारी दिखाई थी, जब भारत आजाद हुआ था और विश्व दो गुटों में विभाजित और शीत युद्ध जैसा माहौल सारी दुनिया में था।
हमारे प्रधानमंत्री ने जितने विदेश दौरे किए हैं, उतने शायद ही किसी अन्य भारतीय प्रधानमंत्री ने किए हों। इसमें कोई दो राय नहीं कि उन्होंने विदेशों में भारत की एक नई पहचान नहीं दी। दुनिया के सभी देश एक-दूसरे पर किसी न किसी तरह निर्भर हैं। विश्व के किसी देश में लड़ाई होती या लड़ाई का माहौल बनता है, तो उसका असर विश्व के दूसरे देशों पर अवश्य पड़ता है।
भारत जबसे आजाद हुआ है, तभी से यह अपने पड़ोसियों और अन्य देशों के साथ संबंध मधुर बनाने की भरपूर कोशिश करता आया है, यह अलग बात है कि कुछ नापाक पड़ोसी भारत की पीठ में छुरा भी घोंपते आए हैं। भारत युद्ध से सदा परहेज करता आया है, लेकिन जब पड़ोसी अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आए तो उन्हें सबक सिखाने के लिए युद्ध का भी सहारा लिया है।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी उस समय समझदारी दिखाई थी, जब भारत आजाद हुआ था और विश्व दो गुटों में विभाजित और शीत युद्ध जैसा माहौला सारी दुनिया में था। नेहरू ने उस समय किसी भी गुट में भारत को शामिल न होने के लिए मन बनाया था। वे समझते थे कि भारत को विकास की राह पर ले जाने के लिए दुनिया के सभी देशों के साथ रिश्ते मधुर होना जरूरी है। मौजूदा दौर में प्रधानमंत्री मोदी भी विदेश के साथ रिश्ते मधुर बनाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। मगर उन्हें इस बात को भी याद रखना चाहिए कि वे अमेरिका की गिरगिट की तरह रंग बदलती नीतियों और अपने पडोसियों के नापाक इरादों से बच कर रहें।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर