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येदियुरप्पा कर्नाटक में बीजेपी के पोस्टर बॉय: रिटायरमेंट का ऐलान कर चुके पूर्व सीएम, पार्टी चाहती है विधानसभा चुनाव में बढ़त बनाएं

कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी राज्य के पूर्व बीएस येदियुरप्पा पर निर्भर नजर आ रही है। 80 साल के येदियुरप्पा राजनीति से विकार लेने की घोषणा कर चुके हैं। इसके बाद भी भाजपा नेतृत्व चाहता है कि विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री मुख्य भूमिका में रहें। चुनाव में उन्हें सबसे आगे रखने की कई वजहें हैं। उन्होंने न सिर्फ पार्टी को जमीन पर खड़ा किया बल्कि चार बार देखा भी। इसके अलावा कर्नाटक की राजनीति में विशेष महत्व रखने वाले लिंगायत समुदाय में उनकी पकड़ को भी नहीं देखा जा सकता है।

बीजेपी के चुनावी प्रचार अभियान से साफ है कि पार्टी येदियुरप्पा फैक्टर पर कायम है और उन्हें पोस्टर बॉय के रूप में पेश कर रही है। पिछले कुछ दिनों में पीएम मोदी, अमित शाह, रक्षा मंत्री और जेपी नड्डा जैसे शीर्ष नेताओं को जनभावों ने येदियुरप्पा की आकांक्षा करते देखा है।

पीएम ने विश्वास किया था
27 फरवरी को पीएम मोदी कर्नाटक के शिवमोग्गा में जनसभा को संदेश देने पहुंचे थे। इसी दिन राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री का जन्मदिन था। इस मौके पर पीएम ने मंच पर उनके सम्मान में दो बार हाथ मिलाने और झूमने का दावा किया।

येदियुरप्पा शक्तियाँ बेटों को आगे कर सकते हैं
कर्नाटक में बीजेपी के मजबूत नेता येदियुरप्पा (80) अभी बोर्ड बोर्ड के सदस्य हैं। बेटे बीवाई राघवेंद्र शिमोगा से सांसद हैं। येदियुरप्पा के एक बेटे बीवाई विजयेंद्र प्रदेश बीजेपी उपाध्यक्ष हैं। विजयेंद्र को बूथ का जानकार माना जाता है। भीतरखाने चर्चा है कि अगली सरकार में येदियुरप्पा अपने बेटों को बड़ी ‘रोल’ में देखना चाहते हैं। ऐसे में येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय में अपने दबदबे के चलते पार्टी अपनी ताकत दिखाकर बेटे को आगे कर सकते हैं।

सीएम बोम्मई 30 महीने बाद भी अपने कैबिनेट का विस्तार नहीं कर पाए
माना जाता है कि येदियुरप्पा की सहमति के बाद ही वर्तमान चाप बसवराज बोम्मई को कार्य किया गया था। लेकिन बोम्मई पद संभालने के 30 महीने बाद भी कैबिनेट का विस्तार नहीं कर पाए। सूत्रों के मुताबिक बीजेपी आलाकमान कैबिनेट विस्तार के कारण विरोध की आशंका को टालने के लिए इस पर फैसला ही नहीं पाया। वर्तमान कैबिनेट में कई कार्यक्षेत्रों का प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।

पीएम, शाह, नड्डा कर चुके हैं येदियुरप्पा की आकांक्षा
गृह मंत्री अमित शाह ने भी हाल ही में कर्नाटक में एक जनसभा की। इस दौरान उन्होंने लोगों से पीएम मोदी और येदियुरप्पा पर गारंटी देने और राज्य में बीजेपी की सत्ता आने का अनुरोध किया। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अपेक्षा सिंह भी पूर्व मुख्यमंत्री की उम्मीद कर रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स में बीजेपी के सूत्रों के वायरिंग से दावा किया जा रहा है कि कर्नाटक में बीजेपी की ओर से येदियुरप्पा को प्रोजेक्ट करने की कई वजहें हैं। पार्टी राज्य में सत्ता विरोधी को कम करने, लिंगायत वोट बैंक को डाउनलोड करने और कांग्रेस से प्रतिस्पर्धा करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री के सामने आ रही है।

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के राजनीतिक विश्लेषण ए. नारायण कहते हैं कि पहले बीजेपी येदियुरप्पा के बिना चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थी, लेकिन स्थानीय स्तर पर लोगों में पार्टी की प्रति गारंटी कम है। ऐसे में बीजेपी को येदियुरप्पा का सहयोग लेना पड़ा। बता दें कि येदियुरप्पा ने 26 जुलाई 2021 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया

येदियुरप्पा बोले- हमेशा अग्निपरीक्षा से गुजरा हूं
सिक्किम के ऐलान के बाद येदियुरप्पा ने कहा कि मैं हमेशा अग्निपरीक्षा से गुजरा हूं। इसके कुछ देर बाद उन्होंने राजभवन पहुंचकर राज्यपाल का इस्तीफा सौंप दिया। उनकी जमानत भी ली गई है। हालांकि, नए अधिसूचना के घोषणा तक वे कार्यकारी बने रहेंगे।

येदि ने कहा कि उन पर हाईकमान का कोई दबाव नहीं है। मैंने खुद से इस्तीफा दे दिया। मैंने किसी के नाम का सुझाव नहीं दिया है। पार्टी को मजबूत करने के लिए काम करेंगे। कर्नाटक की जनता की सेवा का मौका देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का धन्यवाद।

4 बार रहे, कभी-कभी पूरा नहीं कर पाए
येदियुरप्पा सबसे पहले 12 नवंबर 2007 को कर्नाटक के बने, लेकिन सात दिन बाद 19 नवंबर 2007 को ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 30 मई 2008 को दूसरी बार क्लिक बने। भ्रष्टाचार के गंभीर घोटाले के कारण इस बार 4 अगस्त 2011 को इस्तीफ़ा दे दिया गया। तीसरी बार 17 मई 2018 को रनवे पर बने रहें और छह दिन बाद 23 मई 2018 को इस्तीफा दे दिया गया। चौथी बार 26 जुलाई 2019 को दो साल बाद इस्तीफा दे दिया।

लिंगायत समुदाय के बारे में जान संगठन
लिंगायत वीरशैव संप्रदाय का हिस्सा है। शैव संप्रदाय के कुछ लोग शिव के साकार रूप की पूजा करते हैं। वहीं लिंगायत संप्रदाय के लोग शिव के निराकार अर्थात इष्टलिंग की पूजा करते हैं। लिंगायत समुदाय को कर्नाटक के अगड़ी जाति के लोग रहते हैं। इस समुदाय के लोग ना वेदों में विश्वास रखते हैं और ना ही मूर्ति पूजा में। वे पुनर्जन्म में भी विश्वास नहीं करते। लिंगायत समुदाय के लोगों का मानना ​​है कि एक ही जीवन है और कोई भी अपने कर्मों से अपने जीवन को स्वर्ग और नरक बना सकता है।

लिंगायत समुदाय पर मजबूत पकड़
कर्नाटक में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं और येदियुरप्पा की लिंगायत समुदाय पर पकड़ मजबूत है। ऐसे में उनकी मर्जी के बाद बीजेपी के लिए इस समुदाय को सबसे बड़ी चुनौती होगी। पिछले दिनों ही विभिन्न लिंगायत मठों के 100 से अधिक संतों ने येदियुरप्पा से मुलाकात कर उन्हें समर्थन की पेशकश की थी। संतों ने भाजपा को चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें हटाया गया तो इसका परिणाम छोटा होगा।

कर्नाटक में 100 असेंबली सरफेस पर प्रभाव
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय 17% के आसपास है। राज्य की पहले से आबादी पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिए येदि को देखना आसान नहीं होगा। ऐसा होने का मतलब इस समुदाय के वोटों को खोना होगा।

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