महाठग सुकेश चंद्रशेखर जेल स्टाफ को महीने में देता था 1.5 करोड़ रुपए की घूस, मदद के चक्कर में 81 पर मामला दर्ज
Sukesh Chandrashekhar: जांच में पाया गया कि सुकेश को जिस वार्ड नंबर 3 के बैरक नंबर 204 में रखा गया था, वहां के सीसीटीवी कैमरे को पर्दे और पानी के बॉटल से ढक दिया गया था।
फोर्टिस हेल्थकेयर के पूर्व प्रवर्तक शिविंदर सिंह की पत्नी अदिती सिंह से 200 करोड़ रुपये वसूली करने वाले कैदी सुकेश चंद्रशेखर की मदद करने के मामले में आठ जेल अधिकारियों को गिरफ्तार करने के महीनों बाद, आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने भ्रष्टाचार के आरोपों में रोहिणी जेल के 81 अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। जांच में पाया गया कि गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक सुकेश से हर महीने 1.5 करोड़ रुपये ले रहा था और अन्य कर्मचारियों में बांट रहा था।
बता दें कि, अब इन अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए ईओडब्ल्यू छह महीने से दिल्ली जेल प्रशासन की मंजूरी का इंतजार कर रहा है। एसीपी (ईओडब्ल्यू) वीरेंद्र सेजवान द्वारा दायर एक शिकायत के आधार पर पिछले महीने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7/8 के तहत एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें सुकेश और अन्य आरोपियों के नाम लिखे गए थे।
एसीपी (ईओडब्ल्यू) वीरेंद्र सेजवान ने शिकायत में कहा था कि “स्पेशल सेल पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर संख्या 208/21 की जांच अब ईओडब्ल्यू द्वारा की जा रही है। ऐसे में जांच के दौरान पाया गया कि सुकेश न्यायिक हिरासत से जेल अधिकारियों की मिलीभगत और अपने साथियों के साथ मिलकर एक संगठित अपराध सिंडिकेट (जबरन वसूली रैकेट) चला रहा था।”
एसीपी ने कहा कि सबूतों के आधार पर, उन्होंने मकोका (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम) के तहत 8 जेल अधिकारियों को गिरफ्तार किया था। सेजवान के मुताबिक, आरोपियों ने भी अपने इकबालिया बयान में स्वीकार किया कि वे सुकेश के पूरे सिंडिकेट के बारे में जानते थे। सुकेश हर महीने जेल कर्मचारियों को 1.5 करोड़ रुपए देता था। इन रुपयों के बदले सुकेश बिना किसी रोक-टोक के मोबाइल फोन और एक अलग बैरक का इस्तेमाल कर रहा था।
एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि, जांच के दौरान मिले सबूतों से यह भी स्पष्ट हुआ कि सुकेश ने हर कर्मचारी को मुंह बंद रखने के लिए पैसे दिए, भले ही उसका कोई भी काम रहा हो। एसीपी ने कहा कि, सहायक अधीक्षक धर्म सिंह मीणा के फोन से मिली जानकारियों से इन आरोपों की पुष्टि हुई है। वहीं, रोहिणी जेल के लगभग सभी कर्मचारियों के नाम हाथ से लिखी गई एक चिट्ठी भी मिली। एसीपी ने कहा कि इस चिट्ठी में हर नाम के आगे एक संख्या लिखी गई थी। मीणा ने यह भी स्पष्ट किया कि सुकेश के माध्यम से जेल अधिकारियों को नियमित रूप से रिश्वत दी जाती थी।
एफआईआर दर्ज होने से पहले, तत्कालीन डीसीपी (ईओडब्ल्यू) मोहम्मद अली ने 10 जनवरी को डीजी (दिल्ली जेल) संदीप गोयल को एक पत्र भेजा था, जिसमें जेल प्रशासन से 82 अधिकारियों की जांच की अनुमति देने के लिए कहा गया था। हालांकि, इस अनुमति पत्र को बाद में जेल प्रशासन ने दिल्ली सरकार के विजिलेंस निदेशालय को भेज दिया था।
इस पत्र के मामले में जवाब देते हुए कहा गया था कि ईओडब्ल्यू को पीओसी एक्ट के तहत किसी मामले की जांच करने का हक नहीं है। हालांकि, ईओडब्ल्यू के बदले दिल्ली पुलिस ने कहा था कि वह जांच के लिए हकदार है और उसने अनुमति भी मांगी थी, जिसमें मंजूरी का अभी इंतजार है।