बिजली बिल से लेकर गन्ना भुगतान…अटकी हैं हमारी ये मांग, टिकैत ने बताया किसान क्यों घाटे में
किसान आंदोलन के पोस्टर बॉय रहे राकेश टिकैत का दावा है कि सरकारें बातचीत के लिए राजी नहीं है। उनकी यह टिप्पणी ऐसे वक्त पर आई है, जब विभिन्न मांगों को लेकर
AAP शासित पंजाब की राजधानी में घुसने से रोकने पर अन्नदाता चंडीगढ़-मोहाली सीमा के पास धरने पर बैठे हैं।
किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) नेता राकेश टिकैत का दावा है कि बिजली बिल से लेकर गन्ना भुगतान सरीखे अहम मुद्दों पर किसानों की अहम मांगें अभी भी अटकी हैं। ऐसे में देश में फिर बड़े आंदोलन की जरूरत लग रही है। उन्होंने इसके साथ ही समझाया कि अन्नदाता किस कदर घाटे की मार से जूझ रहा है।
मंगलवार (17 मई, 2022) को पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, “पूरे प्रदेश में बिजली के सबसे ज्यादा रेट हैं। भुगतान है नहीं…दो-दो साल में गन्ने का पेमेंट होता है। जो गन्ना हम आज लगाएंगे, दवाई उसमें आज लग रही है। अगले साल वो जाएगा। तीसरे साल उसके पैसे मिलेंगे। ऐसे में तीन साल की खेती हो जाएगी।”
उन्होंने आगे पूछा- ऐसा कोई व्यापार है क्या है, जिसमें पैसा तीन साल में मिलता हो? दुनिया में कोई ऐसा कारोबार हो तो बता दो? इसलिए तो किसान घाटे में है। एक बड़े आंदोलन की देश में फिर से जरूरत है। सरकारें बातचीत करने को तैयार नहीं हैं। जो दिल्ली का समझौता हुआ, वह ऑनलाइन समझौता हुआ। सरकार उसे भी मान नहीं रही है। वह एमएसपी का सवाल हो या फिर एनजीटी के नाम पर ट्रैक्टर तोड़े जा रहे हैं।
बकौल राकेश टिकैत, “हमने यह कहा कि एनजीटी में एक बार विचार होना चाहिए। हमको भी तो बैठाओ वहां पर…जज की गाड़ी 10 साल में 50-60 हजार किमी चलती है। डॉक्टर की 80-90 हजार किमी चल जाती है। रोडवेज की गाड़ी 10 लाख किमी चलती है और किसान का ट्रैक्टर व जज-डॉक्टर की गाड़ी एक श्रेणी में आती है। लेकिन यह है कि कंपनी को फायदा कैसे होगा…वो देश में राज चल रहा है।”
उनके मुताबिक, “सरकारें अगर गलत फैसला लेंगी तो हम उसका विरोध करेंगे। बिजली संशोधन विधेयक पर बातचीत हुई थी कि इस पर कोई दिक्कत होगी तो बात करेंगे। कोयले की कमी दिखाकर के धीमे-धीमे कर के रेट बढ़ाने का काम हो रहा है।”
उन्होंने इससे पहले 16 मई, 2022 को ट्वीट कर कहा था- सरकारों का काम होता है किसान आंदोलन को तोड़ना, फूट डालना या कमजोर करना। हमारा धर्म है किसानों की आवाज को और बुलंद करना। उनके अधिकारों की रक्षा करना। आखिरी सांस तक किसानों की लड़ाई जारी रहेगी।